एक ओवर में लगातार छह छक्के.... किसी एक विश्व कप में 300 से अधिक रन और 15 विकेट.... सिक्सर किंग का तमगा.
कैंसर
की चपेट में आना और फिर कैंसर को हराकर टीम इंडिया में धमाकेदार वापसी.....अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि बात बाएं हाथ के बल्लेबाज़ और
दिग्गज ऑलराउंडर युवराज सिंह की हो रही है. 37 साल के युवराज सिंह ने 19 साल पहले टीम इंडिया की जर्सी पहनी थी और भारत के लिए पहला वनडे मुक़ाबला खेला था.
40 टेस्ट और 304 वनडे मुकाबले खेल चुके युवराज को 2011 की विश्व कप की जीत का हीरो माना जाता है.
युवराज को इस टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट भी चुना गया था.
पिता जोगराज युवी को क्रिकेटर बनाना चाहते थे और इसके लिए उन्हें युवराज को काफी डांट-फटकार भी लगानी पड़ी.
अपनी आत्मकथा 'द टेस्ट ऑफ़ माई लाइफ़' में युवराज बताते हैं, "जब मैं 11 साल का था, मैंने अंडर 14 स्टेट टूर्नामेंट में स्पीड स्केटिंग स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता था. उस शाम मेरे पिता बुरी तरह गुस्से में थे. उन्होंने मुझसे मेडल छीन लिया और कहा कि ये लड़कियों का खेल खेलना बंद करो और मेडल दूर फेंक दिया."
युवराज की क्रिकेट प्रतिभा को परखने के लिए उनके पिता जोगराज उन्हें पटियाला ले गए, जहाँ नवजोत सिंह सिद्धू के सामने उन्हें अपना क्रिकेट कौशल दिखाना था.
युवराज लिखते हैं, "जब महारानी क्लब पटियाला में सिद्धू मेरा मूल्यांकन कर रहे थे, तब मैं पूरी तरह सहज नहीं था. मैं जिस तरह का बच्चा था, अपने हिसाब से शॉट खेलता था, लेकिन मुझे ये समझ नहीं थी कि मेरा लेग स्टंप कहां है. 13 साल की उम्र में 13 साल के बच्चे की ही तरह था, 13 साल के सचिन तेंदुलकर की तरह नहीं."
सिद्धू ने युवराज को ख़ारिज कर दिया और इस तरह युवराज पटियाला से वापस चंडीगढ़ लौट आए. पिता जोगराज युवराज को तेज़ गेंदबाज़ और ऑल राउंडर बनाना चाहते थे, युवराज को 1993 में बिशन सिंह बेदी की दिल्ली स्थित एकेडमी में समर कैंप में डाल दिया गया.
अपनी आत्मकथा में युवराज लिखते हैं, "दिल्ली की गर्मी में हालत ख़राब थी. वो तो भला हो पाजी का कि वो अगले साल कैंप को हिमाचल प्रदेश स्थित चैल ले गए. मुझे बिशन सिंह बेदी के बाद उभरते हुए तेज़ गेंदबाज़ के रूप में भेजा गया था. मैं अपनी उम्र के लड़कों के मुक़ाबले लंबा और मजबूत काठी का था. मैं तेज़ गेंदबाज़ी की कोशिश करता था और आठवें नंबर पर बैटिंग करता था."
युवराज लिखते हैं, "जब बेदी ने मुझे गेंदबाज़ी करते देखा तो वो ज़ोर से चिल्लाए- तुम क्या कर रहे हो. वो पहली ही नज़र में भांप गए थे कि तेज़ गेंदबाज़ बनने का मेरा आइडिया गलत था. - तुम सीमर नहीं बन सकते. जाओ बल्लेबाज़ी करो. मुझे नहीं लगता कि तब उन्हें जरा भी अंदाज़ा होगा कि एक दिन मैं बाएं हाथ का किफायती गेंदबाज़ बनूंगा."
युवराज ने 304 वनडे इंटरनेशनल मुक़ाबलों में 111 विकेट चटकाए हैं और उनका सर्वश्रेष्ठ 31 रन देकर 5 विकेट है.
हिमाचल प्रदेश में चैल दुनिया में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित क्रिकेट ग्राउंड है. ये समुद्र तल से 2,444 मीटर की ऊँचाई पर और पहाड़ी की चोटी पर है.
बिशन सिंह बेदी के ही कैंप में युवराज ने अपने जीवन की पहले सेंचुरी बनाई और तभी उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि क्रिकेट में शीर्ष पर पहुँचने पर क्या आनंद मिल सकता है. युवराज की सेंचुरी क्या बनी, बिशन सिंह बेदी को बल्लेबाज़ों के लिए नया नियम बनाने को मजबूर होना पड़ा.
युवराज लिखते हैं, "100 रन पूरे करने के बाद मैंने दो छक्के जड़े और पाजी ने कैंप में नया नियम लागू कर दिया. उन्होंने कहा कि अब से छक्का मारने का मतलब आउट माना जाएगा. क्योंकि चैल मैं अगर आप गेंद मैदान से बाहर मारते हो तो गेंद हज़ारों फुट नीचे घाटी में पहुँच जाती थी और तब इस गेंद की कीमत करीब 300 रुपये थी."
जूनियर क्रिकेट में बेहतरीन प्रदर्शन करने का पुरस्कार युवराज को मिला और 1997 में उन्हें पंजाब की तरफ से पहला प्रथम श्रेणी मुक़ाबले खेलने के लिए चुन लिया गया.
रणजी सुपर लीग में वो पहली बार उतर रहे थे और मोहाली में खेले गए इस मैच में सामने थी ओडिशा की टीम. युवराज को पारी की शुरुआत करने के लिए मैदान पर भेजा गया था.
युवराज अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, "इस मैच में मेरा स्कोर बतौर ओपनर शून्य था और मैंने एक कैच भी छोड़ा था. इसके बाद मुझ पर बुरा फील्डर होने का लेबल चस्पा कर दिया गया."
यही वजह थी युवराज सिंह को इसके बाद रणजी टीम में वापसी के लिए दो साल का लंबा इंतज़ार करना पड़ा था.
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