अजित डोभाल ने ख़ुद सात साल पाकिस्तान में बिताए हैं. हाँलाकि एक ज़माने
में उनके बॉस रहे और आईबी और रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत कहते हैं कि
डोभाल वहाँ भारतीय उच्चायोग में बाक़ायदा पोस्टिंग पर थे, अंडर कवर एजेंट
के तौर पर नहीं.
लेकिन डोभाल ने विदर्भ मैनेजमेंट एसोसिएशन के समारोह में भाषण देते हुए एक कहानी सुनाई थी, "लाहौर में औलिया की एक मज़ार है,
जहाँ बहुत से लोग आते हैं. मैं एक मुस्लिम शख़्स के साथ रहता था. मैं वहाँ
से गुज़र रहा था तो मैं भी उस मज़ार में चला गया. वहाँ कोने में एक शख़्स
बैठा हुआ था जिसकी लंबी सफ़ेद दाढ़ी थी. उसने मुझसे छूटते ही सवाल किया कि
क्या तुम हिंदू हो?"
डोभाल ने उन्हें बताया कि नहीं. डोभाल के
मुताबिक़, "उसने कहा मेरे साथ आओ और फिर वो मुझे पीछे की तरफ़ एक छोटे से
कमरे में ले गया. उसने दरवाज़ा बंद कर कहा, देखो तुम हिंदू हो. मैंने कहा
आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तो उसने कहा आपके कान छिदे हुए हैं. मैंने कहाँ,
हाँ बचपन में मेरे कान छेदे गए थे लेकिन मैं बाद में कनवर्ट हो गया था.
उसने कहा तुम बाद में भी कनवर्ट नहीं हुए थे. ख़ैर तुम इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो नहीँ तो यहाँ लोगों को शक हो जाएगा."
डोभाल आगे बताते हैं, "उसने मुझसे पूछा कि तुम्हें पता है मैंने तुम्हें कैसे पहचाना.
मैंने कहा नहीं तो उसने कहा, क्योंकि मैं भी हिंदू हूँ. फिर उसने एक अलमारी
खोली जिसमें शिव और दुर्गा की एक प्रतिमा रखी थी. उसने कहा देखो मैं इनकी पूजा करता हूँ लेकिन बाहर लोग मुझे एक मुस्लिम धार्मिक शख़्स के रूप में
जानते हैं."
ये कहानी चूँकि ख़ुद डोभाल के मुँह से आ रही थी, इससे ये आभास मिलता है कि वो कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन एक अंडर कवर एजेंट के
तौर पर काम कर रहे थे.
डोभाल के बारे में ये भी कहा जाता है कि 90 के दशक में उन्होंने कश्मीर के ख़तरनाक अलगाववादी कूका पारे का ब्रेनवाश कर उसे काउंटर इंसर्जेंट बनने के लिए मनाया था.
1999 के कंधार विमान अपहरण को दौरान तालिबान से बातचीत करने वाले भारतीय दल में अजीत डोभाल भी शामिल थे.
रॉ
के पूर्व चीफ़ दुलत कहते हैं, "उस दौरान कंधार से डोभाल मुझसे निरंतर टच में थे. ये उनका ही बूता था कि उन्होंने हाइजैकर्स को यात्रियों को छोड़ने
के लिए राज़ी किया. शुरू में उनकी मांग भारतीय जेलों में बंद 100
चरमपंथियों को छोड़ने की थी लेकिन अंतत: सिर्फ़ तीन चरमपंथी ही छोड़े गए."
डोभाल
के एक और साथी सीआईएसएफ़ के पूर्व महानिदेशक केएम सिंह कहते हैं,
"इंटेलिजेंस ब्यूरो में मेरे ख़याल से ऑपरेशन के मामले में अजित डोभाल से अच्छा अफ़सर कोई नहीं हुआ है."
"1972 में वो आईबी में काम करने
दिल्ली आए थे. दो साल बाद ही वो मिज़ोरम चले गए, जहाँ वो पाँच साल रहे और इन पाँच सालों में मिज़ोरम में जो भी राजनीतिक परिवर्तन हुए, उसका श्रेय
अजित डोभाल को दिया जा सकता है."
केएम सिंह आगे बताते हैं, "अस्सी के दशक में पंजाब की हालत बहुत ख़राब थी. वो पंजाब गए और ब्लैकथंडर ऑपरेशन में उनका जो योगदान रहा उसका वर्णन
करना बहुत मुश्किल है. भारतीय पुलिस में 14-15 साल की नौकरी के बाद ही
पुलिस मेडल मिलता है. ये अनूठे अफ़सर थे जिन्हें मिज़ोरम में सात साल की
नौकरी के बाद ही पुलिस मेडल दे दिया गया. सेना में कीर्ति चक्र बहुत बड़ा पुरस्कार माना जाता है, जो सेना के बाहर के लोगों को नहीं दिया जाता. अजित डोभाल अकेले पुलिस अफ़सर हैं जिन्हें कीर्ति चक्र भी मिला."
डोभाल के जानने वालों का मानना है कि 2005 में रिटायर हो जाने के बावजूद भी वो
ख़ुफ़िया हल्क़ों में काफ़ी सक्रिय थे. अगस्त 2005 के विकीलीक्स केबल में
ज़िक्र है कि डोभाल ने दाऊद इब्राहिम पर हमला करवाने की योजना बनाई थी लेकिन मुंबई पुलिस के कुछ अधिकारियों की वजह से इसे अंतिम समय पर अंजाम
नहीं दिया जा सका.
हुसैन ज़ैदी ने अपनी किताब 'डोंगरी टू दुबई' में इस घटना का विस्तार से ज़िक्र किया है. अगले दिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया के
मुंबई संस्करण में इस बारे में एक ख़बर भी छपी लेकिन डोभाल ने इसका खंडन किया. उन्होंने मुंबई मिरर को दिए इंटरव्यू में बताया कि उस समय वो अपने घर
में बैठकर फ़ुटबाल मैच देख रहे थे.
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
बने और अजित डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया तो लोगों को आश्चर्य
नहीं हुआ. उसके बाद से मोदी सरकार में उनकी पैठ इस हद तक बढ़ गई कि कहा
जाने लगा कि उन्होंने गृहमंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज
के असर को कम कर दिया है.